प्रदीप ने बताया कि पराली को पानी में डुबो कर एक से दो दिन रखने के बाद उसकी लुग्दी तैयार की जाती है। लुग्दी से आसानी से डिस्पोजेबल बर्तन तैयार किया जा सकता है।
‘आम के आम गुठलियों के दाम’ और वह भी उस पराली के लिए जो पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण का प्रमुख कारण बनी हुई है। अब यही पराली किसानों के लिए आय का साधन बनेगी। रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में संचालित एग्री बिजनेस इंक्यूबेटर में इंदौर के युवा दंपती प्रदीप पाण्डेय और पूजा पाण्डेय ने पराली से डिस्पोजबल बर्तन तैयार किया है। साथ ही, एग्रो स्टार्टअप भी शुरू किया है और किसानों को इसे लघु उद्योग के रूप में स्थापित करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
मालूम हो कि फसलीय अवशेष विशेषकर पराली का निस्तारण बड़ी समस्या बनी हुई है। कुछ जगहों पर किसान इसे जला देते हैं, जो प्रदूषण का बड़ा कारण बन रहा है। प्रदीप पाण्डेय बताते हैं कि ऐसे में हमने प्लास्टिक से तैयार डिस्पोजेबल को चुनौती मानते हुए पराली से डिस्पोजेबल बर्तन तैयार किया है। यह स्वत: गल जाएगा और इससे खाद भी बनाई जा सकती है।
प्रदीप ने बताया कि पराली को पानी में डुबो कर एक से दो दिन रखने के बाद उसकी लुग्दी तैयार की जाती है। लुग्दी से आसानी से डिस्पोजेबल बर्तन तैयार किया जा सकता है। इसके लिए अलग से मशीन की जरूरत नहीं पड़ती। कागज के डिस्पोजेबल बनाने वाली मशीन से ही यह बन सकता है। इससे कप, गिलास, थाली, प्लेट, कटोरी भी बनाई गई है।